Skip to content
Menu
The Neo Protagonist
  • Home
  • Social Issues
  • Lifetsyle
  • Art and Entertainment
  • Poetry and Writing
    • Poems
    • Short stories
    • Hindi
  • About
The Neo Protagonist
poet jamil

Hindi Short Story of a Poet- जमील सिकंदरपूरी (Jamil Sikanderpuri)

by Saba Fatima

गर्मी के मौसम में घर की सबसे नीचे वाली मंजिल रात के अंधेरे में बिल्कुल सुनसान रहती थी, और होती भी क्यों नहीं घर के सभी लोग साथ मिलकर छत पर जो सोया करते थे I फिर आधी रात को नीचे तभी आना होता था अगर किसी को बाथरूम जाना हो I यह भी कोई आसान काम ना था I चिराग जलाकर बड़े-बड़े परछाइयों के बीच, ऊंचे ऊंचे सीढ़ियों से, आहिस्ता आहिस्ता नीचे उतरना और काली सी गुफा जैसे बाथरूम में घुस जाना किसी भूत के फिल्म का दृश्य लगता था I

उन दिनों उस मोहल्ले में हफ्तों तक बिजली नहीं आती थी और आ जाती तो सब उठ कर इधर-उधर ऐसे भागते जैसे स्कूल में छुट्टी की घंटी बज गई हो I कोई पानी का मोटर चलाने भागता, कोई कपड़े इस्त्री करने, कोई टी।वी पर शक्तिमान देखने तो कोई बस पंखे की हवा लेने I अगर उस वक्त भी मोबाइल फोन होते तो लोग सबसे पहले फोन चार्ज पर लगाने के लिए भागते I

गर्मी में घर की आबादी भी बढ़ जाती थी I जहां घर में पहले से कई लोग रहते थे, वही गर्मी में यह आबादी दुगनी हो जाती थी I ऐसा इसलिए था कि गर्मी की छुट्टियों में घर की सभी शादीशुदा लड़कियां अपने अपने बच्चों को लेकर अपने मायके आ जाती थी I ऐसे तो कई परिवार छुट्टियां मनाने हिंदुस्तान के अलग-अलग कोने देखने जाते हैं पर इन सब बच्चों के लिए गर्मी की छुट्टियां नाना नानी के घर के बिना अधूरी थी I पुराने जमाने की इस इमारत में मोटे-मोटे दीवार थे और हर तरफ दीवारों में ताखे बने थे I एक तरफ पक्की इमारत थी, दूसरी तरफ एक मिट्टी का घर था जिसमें ऐसे तो अनाज रखा जाता था, पर बच्चों को डराने के लिए यह कहानी भी बनाई जाती थी कि इसमें एक बहरी दादी का भूत है I इस कारण बच्चे उधर जाना पसंद नहीं करते थे पर बड़े हो या बच्चे सबको आंगन में बैठना बहुत पसंद था I

चारों तरफ के मकान से घिरा हुआ एक आंगन फैला हुआ था जहां चारपाई बिछाकर लोग ठंडे में धूप का मजा लेते और गर्मी में शाम की ठंडी हवा लेने को बैठते थे I सुबह-सुबह के चाय और अंडे का सब यही आनंद उठाते थे I पर मक्खियों के आतंक से सब बाकी का नाश्ता अंदर के बड़े कमरे में ही करते थे I यह कमरा गर्मी में थोड़ा ठंडा रहता था इसलिए दोपहर में सब यही इकट्ठा होते थे I

moonlit night

गर्मी की चांदनी रातों में, खुले आसमान के नीचे, सरसराती हवाओं के बीच सोने की बात ही कुछ और थी I सब आपस में बात करते-करते सोते थे I कोई इधर-उधर के गप्पे मारता, कोई अंताक्षरी खेलता, कोई नात या कलमा पढ़ता, कोई बड़ों के पैर-हाथ दबाते हुए और भूत की कहानियां सुनते हुए सो जाता I फोन और टी.वी के बिना भी सब खुशी-खुशी वक्त गुजारते थे Iधीरे-धीरे एक-एक कर सब की आंख लग जाती थी और फिर चारों ओर सन्नाटा छा जाता था I जैसे-जैसे रात बढ़ती हवा भी ठंडी हो जाती और सब अपने-अपने चादरों में घुस जाते थे I भोर में फजर की आजान होने से पहले ही बीच वाली मंजिल के छत से बधने में पानी भरने की आवाज आने लगती थी I घर की एक ही शख्स थे जो इस छत पर अकेले रेडियो सुनते हुए अपने बड़े से चारपाई पर मच्छरदानी के नीचे सोया करते थे I यह नाना थे और आजान से पहले इनके बधने की आवाज ही फजर का ऐलान कर दे दी थी I

कोई इन्हें मास्टर मतीउल्लाह के नाम से जानता था क्योंकि कई सालों तक यह साइकिल लिए दूर की एक स्कूल में पढ़ाने जाया करते थे I कोई इन्हें डॉक्टर मतीउल्लाह कहता क्योंकि स्कूल के बाद यह घर में ही अपना एक होम्योपैथी का दवाखाना एक बड़े से कमरे में बैठ कर चलाते थे I बाद में ज्यादातर गरीब बीमार लोग इन्हें इसी नाम से जानते थे क्योंकि यह उन्हें बिना पैसे लिए दवा दे देते थे I

इन सब के सिवा इनकी एक और पहचान भी थी जिससे यह सबसे ज्यादा जुड़े थे I यह थी एक शायर की पहचान I शायरी की दुनिया में यह जमील सिकंदरपूरी के नाम से जाने जाते थे I इन्हें लिखना बहुत पसंद था और तन्हा बैठकर बहुत से शेर लिख देते थे I दुनिया के झमेले से दूर रहना पसंद करते थे ,फिर भी गहराई से दुनिया को समझते थे I जितना लिखना और सोचना पसंद करते उतना ही कम बोलना पसंद करते थे I वह खामोश रहते थे पर सबको हर पल उनके होने का एहसास रहता था I आंगन के पास चौकी पर बैठे पान दान की चीजों से अपने पान के पत्ते पर कारीगरी करते और खा लेते I साइकिल लिए बाजार जाते थे फिर आम और खरबूजे ले आते थे I बहुत ही सरल और शांत थे नाना और वक्त के बिल्कुल पाबंद थे I यह एक रूहानी शख्सियत थे जो खुदा की मोहब्बत और गरीबों की मदद में ही ज्यादातर मुब्तला रहते थे I परिवार वालों से भी बहुत प्यार करते थे I मजहब की बात तो सिखाते ही थे और दुनिया में यह जैसे रहते वही देख कर सब समझ जाते थे कि सुकून से रहना हो तो कैसे रहना चाहिए I

ऐसे तो हर चीज में अनुशासन का पालन करते थे पर दो बुरी आदतों को छोड़ नहीं पाते थे I एक थी पान खाने की आदत और दूसरा था सिगरेट I सिगरेट की ऐसी आदत लग गई थी कि उसके बिना 1 दिन भी नहीं गुजरता था I जब उम्र बढ़ गई तो सुबह से बस बैठका के कमरे में ही बैठे रहते, मरीजों को देखते और बीच के वक्त अपनी शायरी आगे बढ़ाते I उनका रहन-सहन उनकी बात उनकी सोच सब कुछ एक साफ दिल इंसान को पेश करती

पर ऐसे साफ दिल रूहानी और मोहब्बती इंसान को भी हर इंसान की तरह जिंदगी ने अपना वक्त गिन कर ही दिया I अचानक एक रोज एक दिल का दौरा सा आया और नाना गिर पड़े I जब पता चला कि उनको कैंसर हो गया है तो सबका दिल फट सा गया I फिर एक के बाद एक कैंसर अस्पतालों के चक्कर लगाए गए I एक डॉक्टर को भी इस बीमारी का इलाज ना मिला I दवाखाना इस बार जो बंद हुआ फिर कभी दवाखाना ना रह पाया I बस एक कमरा रह गया I

धीरे-धीरे नाना और कमजोर होने लगे I फिर याददाश्त भी जाने लगी I बलिया से बनारस गए, वहां से मुंबई और वहां से कलकत्ता -कभी एलोपैथिक दवाई खाई ,कभी आयुर्वेदिक, पर कुछ काम ना आया I लिखना पढ़ना भी बंद हो गया I

उन्होंने अपनी आखरी सांसे एक एंबुलेंस में लिए जिसमें मैं भी मौजूद थी I जानकनी के वक्त वह समझ गए कि जाने का वक्त आ गया है और यह तो जानते ही थे किसके पास जाना है , तो चढ़ती हुई सांस लेते हुए , कांपते हुए हाथों से अपनी तस्वी ढूंढ कर उसको पढ़ने लगे, और उसी हालात में चल बसे I यहां से वहां I

ambulance n death of poet

एक बार नाना ने यह शायरी सुनाई थी –

“मैं क्या कहूं, कब कहूं, कैसे कहूं, मैं यह बातें सोचते ही सोचते रह गयाI”

जो भी सोचते थे वह उन्हें अपनी किताब में लिख देते थे I वह इतने नम्र दिल और सादा इंसान थे कि उनके किरदार को यह शायरी स्पष्ट कर सकती है –

“कोई उन्हें छोटा महसूस कराता, इतना बड़ा खुद को उन्होंने समझा ही नहीं I वह आग से भी मिलते तो राख बन कर I”

सुबह-सुबह आंगन में जब सब बैठा करते थे तो चहकती हुई गौरैया दीवार की कोने में घोंसला बनाती थी और छुपती-दिखती रहती थी I हर अच्छी चीजों की जैसे अब वह भी नहीं दिखती I

sparrow poet
Spread the love

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • Finding Happiness: How to Shift Focus and Embrace Life’s Impermanence
  • Existential Crisis: The Struggles and Growth
  • Hustle Culture: How toxic routine is ruining lives
  • 7 Ways how to Choose Sustainable Fashion
  • 8 traits that make you an Emotionally Intelligent person

Recent Comments

  • Finding Happiness: How to Shift Focus - The Neo Protagonist on How to achieve what you need most in life?-Maslow’s Hierarchy
  • Hustle Culture: How toxic routine is ruining lives on How to achieve what you need most in life?-Maslow’s Hierarchy
  • Existential Crisis: The Struggles and Growth - The Neo Protagonist on 8 traits that make you an Emotionally Intelligent person
  • Hustle Culture: The harmful impact of a toxic routine on SOCIAL MOBILITY: Why do you need to progress?
  • 7 Ways how to Choose Sustainable Fashion - The Neo Protagonist on ECO-LIVING: How to start living an eco-friendly life

Categories

ABOUT US

The Neo Protagonist is a place for dreamers and changemakers. It aims to build a healthy community that is growth-oriented. The content focuses on the cultivation of minds. Here, we believe that we can always be better at being human. Come, let us pull ourselves out from the chaos that keeps sucking us in and create a better version of ourselves and the world around us.

THE NEO PROTAGONIST

  • ABOUT US
  • PRIVACY POLICY
  • DISCLAIMER
  • TERMS AND CONDITIONS
  • CONTACT US

Connect WITH US

  • Email
  • Facebook
  • Instagram
  • Pinterest
  • Twitter
  • YouTube
©2025 The Neo Protagonist | Powered by WordPress and Superb Themes!