आजकल कहानियां सुनाने और लिखने का वक्त निकालना बहुत ही मुश्किल हो चुका है I कहानियों का
सिलसिला कब से शुरू हुआ यह बताने की फुर्सत बहुत दिन बाद मिली हैI कहानियां सुनने की आदत तो सबको
बचपन से लग जाती है I
यूं तो बचपन में मुझे बहुत लोगों ने कहानियां सुनाई है पर सबसे दिलचस्प कहानियां शायद मेरी दादी की ही
रही हैं I सिर्फ बचपन में ही नहीं बल्कि बड़े हो जाने पर भी अपने जमाने की जो कहानियां दादी सबको सुनाया
करती थी वह भी मुझे हमेशा याद रहती हैI
जब कहानियां लिखने और सुनाने की बात आती है तो मुझे सबसे ज्यादा एक ठंडी की दोपहर याद आती हैI
शायद उसी वक्त से मुझे कहानियां सुनाने में दिलचस्पी आने लगी I
वह एक ठंडी की दोपहर थी जब स्कूल से घर आने के बाद मैं और मेरा भाई छत पर बैठे थे I
हम खाना खाने के बाद छत पर अपना अपना स्कूल बैग लेकर स्कूल के होमवर्क करने को बैठे थेI अम्मी भी
हमारे साथ छत पर ही थीI I
वह भीगे कपड़ों को सुखाने के लिए छत की रस्सी पर फैला रही थीI मैंने झटपट अपना होमवर्क कर लिया
और फिर एक नई कॉपी के आखिरी पन्ने पर चित्र बनाने लगे I
चित्र बनाने में माहिर तो नहीं थी पर मुझे चित्र बनाने का बहुत शौक रहता था I फिर मैं क्या बनाऊं यह भी मुझे
मालूम नहीं होता था I मैंने यूं ही पेंसिल उठाई और पन्ने पर एक अंडा बना दिया I फिर मैंने उस अंडे को एक
चेहरे का रूप दे दिया I
देखते ही देखते यह चेहरा एक छोटे से लड़के के रूप में बदल गया I
फिर मैंने उस लड़के के पास एक पेड़ बना दिया और उस लड़के को उस पेड़ की डाली से लटकता हुआ चित्र में दिखाया I
चित्र बनाते बनाते जैसे कि मेरे मन में एक कहानी जन्म लेने लगी I
फिर उस लड़के के पास एक छोटी लड़की को भी बिठा दिया I छोटी लड़की अपने हाथों में कैची पकड़ी हुई थी,
जिससे वह पेड़ के पत्ते को काट रही थी I
तब मेरे भाई ने पूछा कि यह मैंने क्या बनाया है I मैंने उसे बताया कि यह लड़का मंगल है और यह लड़की
उसकी बहन मंगला है I
यह दोनों गर्मियों की छुट्टी में अपने साइंस प्रोजेक्ट के लिए जंगल से अलग-अलग पेड़ों के पत्ते इकट्ठा करने को
आए हैं I
बस कुछ ही देर में यह कॉपी ने एक कहानी की किताब का रूप ले लिया और अगले 2 दिन में मैंने इस कहानी
का पहला पाठ लिख दिया I मुझे अभी भी उसके पहले चार वाक्य याद हैं I
“मंगल और मंगला भाई बहन थे I दोनों का जन्म मंगल को हुआ था इसलिए उनके माता-पिता ने उनका नाम
मंगल और मंगला रख दिया I “
सुनने में तो यह बहुत ही बचकानी सी कहानी लगती है पर यह मेरी जिंदगी की सबसे पहली किताब थी , जिसमें
ना सिर्फ मैंने 15 से 20 पाठ लिख दिए पर हर पाठ के साथ रंगीन चित्र भी बनाए थे I
इस किताब को शायद मैंने कक्षा पांच या छह में लिखा होगा I
और इस को सबसे दिलचस्पी से कोई सुनता था तो वह था मेरा भाई I शायद इसी वजह से मुझे कहानी सुनाने
में भी दिलचस्पी आने लगी I
इसी किताब के बाद कहानियां लिखने का सिलसिला जोरों शोरों से चलने लगा I तब मैं कोई लेखक बनने का
शौक नहीं रखती थी I बस भाई बहनों को कहानी सुनाने का आनंद लेती थी I
इस हिंदी कहानी को लिखने के बाद आगे चलकर मैंने एक शॉर्ट स्टोरीज का इंग्लिश बुक लिखा I
जहां तक मुझे याद है उसमें मैंने 5 या 6 कहानियां लिखी थी I
यह सारी कहानियां सिर्फ मेरे भाई बहनों के लिए ही थी I
कुछ कहानियां तो मैंने यूं ही सुनाई थी जो मैंने कहीं लिखा नहीं और अब मुझे वह याद भी नहीं I
फिर जैसे-जैसे पढ़ाई का प्रेशर बढ़ता रहा कहानियां लिखने की आदत भी जाने लगी I तब वक्त मिलता तो बस
लाइब्रेरी के किताबें पढ़ लिया करती थी I कुछ साल पहले जब अचानक से पुराने किताबों में मुझे मंगल और
मंगला की किताब मिली तो मुझे बहुत ही खुशी हुई I मुझे याद आया कि मुझे लिखने का शौक बचपन से हैI
कक्षा 11 और 12 में आते आते मुझे समझ आ गया था कि शायद मुझे लेखक ही बनने का मन है I
पर सब का मन था कि मैं डॉक्टर बन जाऊं और इसलिए मुझे साइंस सेक्शन में डाल दिया गया I
उस समय मैं ज्यादातर कविताएं लिखा करती थी I साइंस के सब्जेक्ट में मेरा मन कम ही लगता था I
नंबर अच्छे आए या बुरे मैं टीचरों की हमेशा इज्जत करती थी I मुझे हमेशा डिसिप्लिन में ही रहना पसंद था I
इसलिए डिसिप्लिन के विपरीत कुछ करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी I
यह उस वक्त की बात है जब मैं एक तरह की भावनात्मक थकान से गुजर रही थी I
स्कूल में फिजिक्स की परीक्षा थी और मुझे सिर्फ कुछ ही प्रश्नों के उत्तर आते थे I उन प्रश्नों के उत्तर लिखने के
बाद मैंने अचानक से एक कविता लिखना शुरू कर दिया I परीक्षा के पेपर पर मैंने देखते ही देखते एक पूरी
कविता लिख डाली I यह कविता सपनों और भावनाओं के बारे में थी और एक बार जब मैंने उसे लिख दिया तो
मुझे एहसास हुआ कि मैं उस पेपर को बाकी पेपर से अलग नहीं कर सकती थी क्योंकि उससे जुड़े पन्नों पर मेरे
परीक्षा के उत्तर भी लिखे थे I
आखिर में मेरे पास एक ही विकल्प था I
मैंने पेन से उस पन्ने को काट दिया और पेपर को वैसे ही सबमिट कर दिया I
कुछ दिन बाद इस घटना के कारण मुझे मेरे क्लास टीचर से डांट पड़ी तो मैं बहुत शर्मिंदा रह गई I
किसी को भी मुझसे यह उम्मीद नहीं थी I मुझे भी मुझ से यह उम्मीद नहीं थी I
जब मेरे फिजिक्स टीचर ने मुझे सबके सामने इस पेपर को दिखाते हुए बुलाया तब मैं तैयार होकर उनके पास गई कि मैं उनसे अपनी गलती की माफी मांगूंगी I खास तौर पर इसलिए क्योंकि वह मेरे फेवरेट टीचर थे और मैं उनकी बहुत इज्जत करती थी I
उन्होंने मुझे वह पेपर दिया और मैंने देखा कि उस पन्ने पर उन्होंने लाल पेन से इंग्लिश में यह लिखा है कि-‘This is not expected from you’.
जब मैं पेपर लेकर मुड़ी तो सर ने मुझे वापस बुलाया और सबके सामने पूछा कि तुमने साइंस क्यों लिया I
मैंने उन्हें बताया कि सब चाहते थे कि मैं डॉक्टर बन जाऊं I उन्होंने मुझे बोला की स्कूल के बाद तुम साइंस मत
लेना I तुम आर्ट लेकर आगे की पढ़ाई करो और लेखक बनो I यह सुनकर मैं खुशी से भावुक हो गई I पहली बार
किसी बड़े ने मुझे लेखक बनने को प्रोत्साहित किया था और यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी I मेरे नंबर भले ही
कम थे पर मैं उस दिन कक्षा में सबसे ज्यादा मैं खुश थी I आगे चलकर मैंने आर्ट तो नहीं लिया पर मेरा लेखक
बनने का सपना मेरे साथ था I
कॉलेज के जमाने में मैंने एक नई किताब की रचना शुरू कर दी I इस किताब के किरदार थे डेविड, सारा और
जेसन I सिर्फ यही किताब थी जिसे मैंने 30-35 चैप्टर्स तक लिख दिया था I यह वह किताब थी जिसे मैंने पहली
बार अपने दोस्तों में शेयर किया और अपने सारे भाई बहनों को सुनाया I जिस तरह से मेरी एक बहन अनम ने
इसमें दिलचस्पी ली वैसी दिलचस्पी मैंने कभी अपनी कहानियों में नहीं देखी थी I इससे मुझे और प्रोत्साहन और
प्रेरणा मिली I फिर मैंने एक और कहानी की रचना शुरू कर दी जिसको मैं आज तक खत्म नहीं कर पाई हूं I
अभी मैं कहानी लिखती हूं और अपने पति जो कि मेरे बेस्ट फ्रेंड है उनको सुनाया करती हूं I
करोड़ों लोगों तक कभी मेरी कहानियां पहुंच पाएगी या नहीं इसकी उम्मीद तो मुझे ज्यादा नहीं है पर इस ब्लॉग
के जरिए जो चार पांच लोग मेरी कहानी पढ़ते हैं और पसंद करते हैं शायद मेरे लिए इतना ही बहुत है I
मेरे लिए हिंदी से ज्यादा आसान अंग्रेजी कहानियां लिखना है पर इस हिंदी कहानियों की कैटेगरी मैंने सिर्फ
इसलिए बनाई है कि मेरे घर के बड़े लोग जो अंग्रेजी सही से नहीं पढ़ पाते वह भी इन कहानियों को पढ़कर
हमारी पुरानी यादें याद कर पाए I
कभी-कभी लगता है कि कहानी लिखने से ज्यादा मुझे सुनाने का शौक है I फिर चाहे वह मेरी खुद की कहानी
हो या पुराने लेखकों की प्रसिद्ध कहानियां हो I
दादा के गुजर जाने से 3 दिन पहले भी मैं उनके बिस्तर के पास बैठकर उनको अपने कक्षा के हिंदी किताब से
प्रेमचंद की कहानी सुना रही थी I इस कहानी का नाम था ‘बड़े भाई साहब’ I दादा कहानी सुनते रहे और पूरे-पूरे
वक्त रोते रहे. मैंने उनको बोला कि आप रोएंगे तो मैं यह कहानी नहीं सुनऊंगी I पर वह बोलते रहे कि तुम
सुनाती रहो I उनको उस कहानी में अपने छोटे भाई की याद आ रही थी I छोटे दादा का देहांत दादा के देहांत से 6 महीने पहले ही हुआ था और इस कहानी को सुनते वक्त वह बस उनको ही याद कर रहे थे I दादा को भी कहानी सुनने का बहुत शौक था I
एक वृद्ध आश्रम में मेरी दोस्ती एक और दादा से हो गई उनका नाम था ‘इमानुएल ली’ I उन्हें भी किताबों का बहुत शौक था I 80 साल की उम्र में भी वह इंग्लिश की अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ते थे और मिलने पर वह मुझे उन किताबों के बारे में बताते थे I उनको भी मैंने अपनी रखी हुई कविताएं पढ़ने को दी और उन्होंने भी मुझे लेखक बनने के लिए प्रोत्साहित किया I वह भी अपने जमाने की कहानियां मुझे सुनाया करते थे I अपने जमाने में वह एक म्यूजिक कंपोजर हुआ करते थे I वह क्रिश्चियन थे और हर संडे को चैपल जाते थे I वह हमेशा कहते थे कि मैं तुम्हारे लिए जीसस से दुआ करता हूं I
जॉब स्टार्ट होने के बाद मुझे वृद्ध आश्रम जाने का वक्त मिलना बंद हो गया I तब वह मुझे हर संडे को फोन किया करते थे और वृद्धाश्रम की घटनाओं के बारे में बताया करते थे I उन्होंने मुझे रेकी नामक नामक एक प्रोसेस के बारे में बताया जिससे बॉडी हील होती है I उनको बहुत चीजों का ज्ञान था पर पैरालाइसिस के वजह से वह बेबस थे I
एक दिन मुझे एक फोन आया और यह दुख की खबर मिली कि वह अब और नहीं रहे I यह जानकर मुझे बहुत ही दुख हुआ उनके साथ कहानियों का सिलसिला वही खत्म हो गया I
वृद्ध आश्रम में मेरी एक और दोस्ती हुई थी I यह दोस्ती हुई थी प्रीतम मंडल से I प्रीतम अंकल करीब 70- 75 साल के होंगे पर वह काफी फिट थे I सालों पहले वह आर्मी में काम किया करते थे और उनकी बस एक बेटी थी जो शादी के बाद कहीं दूर सेटल हो गई थी I
प्रीतम अंकल से दोस्ती की सबसे अच्छी बात यह थी कि वह वृद्ध-आश्रम से बाहर निकलते थे और चाय पी कर टहल घूम कर वापस आ सकते थे I इसी अवसर का फायदा उठाते हुए मैं उन्हें एक दिन हल्दीराम्स के रेस्टोरेंट में ले गई और हम दोनों ने मिलकर डोसा और समोसे खाए प्रीतम अंकल बहुत खुश हुए I
प्रीतम अंकल को गाने सुनने और गाने का बहुत शौक था I उनके फोन में पुराने गानों का पूरा कलेक्शन था और कुछ-कुछ गाने जो उन्हें पसंद है उसको वह मुझे कह कर डाउनलोड करवा लिया करते थे I
मैं उन्हें छोटे-मोटे गिफ्ट दिया करती थी जैसे चॉकलेट, बिस्किट के पैकेट आदि I एक बार प्रीतम अंकल मुझे विद आश्रम के बाहर वाले चाय की दुकान ले गए और वहां से अपने तरफ से मुझे चाय बिस्किट दिलाई I इसके बाद उन्होंने भी मुझे एक गिफ्ट दिया I जब मेरे मना करने पर भी वह ना माने तो फिर मैंने वह गिफ्ट ले लिया I गिफ्ट में गार्नियर का एक क्रीम था जो कि शायद उन्हें वृद्ध आश्रम के मिले हुए गिफ्ट में मिला होगा I वह मुझे गिफ्ट दे कर बहुत खुश है और मुझे भी बहुत ही प्रसन्नता हुई कि जिनके पास कुछ नहीं उन्होंने मेरे लिए कुछ रखा I
फिर एक दिन मैं उन्हें फोरम नाम के मॉल ले गई जो कि वृद्ध आश्रम के पास ही था I वहां मैं उन्हें फूड कोर्ट ले गई और हम दोनों के लिए पिज़्ज़ा ऑर्डर किया I मॉल में आकर और पिज़्ज़ा खाकर प्रीतम अंकल के खुशी का ठिकाना ना था I वह मुझे बोले जा रहे थे कि “मैं कभी भी ऐसी जगह नहीं आया, मैंने कभी भी पिज़्ज़ा नहीं खाया I मुझे यहां बहुत ही अच्छा लग रहा है शुक्रिया I”
उनको भावुक देख मैं भी भावुक रह गई और सोचने लगी कि काश मेरे पास बहुत सारे पैसे होते तो मैं प्रीतम अंकल की तरह और भी लोगों को अच्छी-अच्छी जगह घूमIती और अच्छे वक्त गुजारने का मौका दे पाती I
मुझे मेरे दादा भी याद आने लगे और मुझे यह याद आने लगा कि दादा अपनी तरफ से हम सभी नाती-पोतियो के लिए कितना कुछ करते थे I वह हमेशा हमें खुश देखना चाहते थे I कभी मिठाई की दुकान तो कभी चॉकलेट की दुकान- जिसको जो पसंद था वह उसके लिए ला देते थेI
मुझे पापा की भी याद आ गई कि पापा किस तरह बचपन से हम सबके लिए हर चीज लाकर देते I मुझे पहली बार पैसे की अहमियत समझ आई I यह लगा कि पैसे कमाने से हम अपने मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी और पूरे परिवार के लिए कितनी खुशियां ला सकते हैं I हालांकि हर खुशी पैसे से नहीं खरीदी जा सकती पर कुछ अच्छे पल पैसों से मिल सकते हैंI
मुझे यह भी एहसास हुआ कि मेरी जिंदगी में मेरे ऊपर हमेशा किसी बुजुर्ग या बड़े का साया रहा जिन की बातें और सोच कुछ मुझसे मिलती और कुछ विपरीत होने के बावजूद भी मेरा उनसे रिश्ता बहुत ही महत्वपूर्ण और अच्छा साबित हुआ I
मुझे यह एहसास हुआ कि किसी भी तजुर्बे वाले इंसान का मेरी जिंदगी में होना मेरे लिए बहुत जरूरी है I मैं किसी भी बड़े की बातें बस सुनने के लिए नहीं सुनती पर समझने की कोशिश हमेशा करती हूं I इसलिए मैं बड़ों की बातों पर चिड़चिड़ाती नहीं बल्कि उस पर गौर करती हूंI
मेरे पापा से भी मैंने बहुत सी बातें सीखी हैं और वह एक बहुत ही अच्छे उदाहरण भी रहे हैं जिंदगी को किस तरह से जिया जाए इस चीज का I भले ही मेरी उनसे कई बातों पर वितरित राय रही हो और उन्हें यह लगा हो कि उनकी बातें मैं समझती नहीं पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं उनकी बातों को कम महत्वपूर्ण समझती हूं I मेरे दादा, नाना, पापा -इन लोगों के ही उदाहरणों को मैं अपनी जिंदगी में लागू करती हूं I
मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझती हूं कि आगे चलकर मुझे जो सास-ससुर मिले और जिस कंपनी में मैंने काम किया वहां के बॉस और लीडर्स भी अच्छे आचार विचार से अपनी जिंदगी को जीते और वही चीजें सब को समझाते I हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के पालन करने वालों को भी मैंने करीब से जाना और दोनों सोच धारा और ईश्वर को समझने की कोशिश को देख कर यही समझा की भिन्नता बहुत कम है I अगर दोनों एक दूसरे के दिलों में झांक कर अल्लाह या भगवान के प्रति श्रद्धा को देख पाते तो उन्हें खुद के दिल का ही दर्पण होता I फिर दूरियां दिखना कम हो जाती और जो दूरियां दिखाते हैं उन पर अफसोस ही होता I
हम अक्सर ऊपर वाले से इस बात पर नाराज हो जाते हैं कि वह एक के बाद एक हमारी झोली में दुख ही क्यों भरता है I हम गम के सागर में खो जाते हैं और ऊपर वाले पर भी भरोसा नहीं कर पाते I पर ऐसा सोचना उचित नहीं है I हम खुद भी तो अपनों को ही सबसे ज्यादा दुख पहुंचाते हैं पर फिर भी तो उनसे ही सबसे ज्यादा प्यार करते हैं I इसी तरह जब खुदा को हम अपना मानते हैं तो उसके दुख को भी कुबूल कर लेना चाहिए जिस तरह से हम उसकी दी हुई खुशियों को कुबूल कर लेते हैं I
कहानियों के सिलसिले में मेरी अगली मुलाकात एक और बुजुर्ग से हुई I इनको हम सीएमडी वाले नाना बुलाते I नाना हमारे दूर के रिश्तेदार थे और जब मैं अपने पापा के ऑफिस में काम करती थी तब वह एकाउंट्स का काम संभालते थे I मैं और नाना पास-पास ही बैठते थे और और दिन भर नाना मुझे इस्लामिक बातें बताते थे I यह बातें ऐसी थी जिन पर मुझे बचपन से दिलचस्पी थी जैसे जिन और परियों की बातें, उन्होंने क्या-क्या अमल किए हैं उसकी बातें और कुरान के सभी नबीयों की कहानियां सुनाते थे I मुझे धर्म में भी ज्यादा दिलचस्पी नाना के वजह से हुई उनके वजह से मैं आगे चलकर नमाजी भी बन गई I उनसे मैंने कई सारी दुआएं सीखें और उनकी रोमांचक कहानियां मैं घर आकर अम्मी,दादी और फूफी को सुनाया करती थी I
इसी तरह पापा के एक दोस्त लियाकत अंकल से भी मेरी दोस्ती हो गई I लियाकत अंकल एक छोटे से उर्दू टीवी शो के डायरेक्टर प्रोड्यूसर थे I उन्हें पुरानी हिंदी फिल्मों का बहुत शौक था और पाकिस्तानी सीरियल्स बहुत देखते थे I उनको पुराने शायरों में दिलचस्पी थी और उनकी भी सोच धारा इंसानियत के और सच्चाई के प्रति रहती थी I
वह एक जर्नलिस्ट भी रहे पर फिर भी उनका मन हमेशा साफ रहा I वह पहले एक टीचर हुआ करते थे और मुझे बताते कि एक टीचर होने से ज्यादा खुशी उनको किसी और चीज में नहीं मिलती I जब उनके पुराने छात्र उन्हें सालों बाद फोन किया करते तो इससे उन्हें बहुत खुशी मिलती I
मुझे हमारे पुराने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की बात भी याद आ गई I उन्होंने भी यही कहा था कि उनकी सबसे पसंदीदा प्रोफेशन टीचर होना है I कुछ साल बाद जब मैंने सिक्किम में 1 साल के लिए टीचर का काम किया तब जाकर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि सच में बच्चों को पढ़ाने जैसा आनंद शायद किसी और प्रोफेशन में मिल सकता है I जिस तरह से बच्चे पढ़ाते वक्त मेरे पाठ पर और उसकी कहानी पर ध्यान देते उस तरह के कहानी में दिलचस्पी से ही मुझे जिंदगी में सबसे ज्यादा आनंद मिलती है I
मेरी बहन मारूफा भी मेरी कहानियों को बहुत दिलचस्पी से सुनती I उसको मैंने सबसे पहले एक छोटी सी बच्चों की किताब सुनाई थी जिसका नाम था कॉड द फिश I फिर मैंने उससे विंपी किड की कहानी सुनाई और ऐन द ग्रीन गेबल्स की कहानी सुनाई I पर हमारी सबसे पसंदीदा किताब थी हाईडी की कहानी जिसे मारूफा के साथ-साथ मेरी फूफी और बज्जो(दीदी) ने भी सुना था I हम तीनों को वह रातें हमेशा याद रहेंगी जब हम सब मिलकर हाईडी की कहानी सुनते थे I
पर कहानियां सुनने के मामले में अगर कोई नंबर वन की पोजीशन पर है तो वह है मेरी फूफी ‘मुन्नी फूफी ‘. कोई सोच भी नहीं सकता कि मुन्नी फूफी को मैंने कितने बेहतरीन और नामी किताबें पढ़कर सुनाई हैं I उनके अंदर भी इतना धैर्य था कि उन्होंने घंटों बिता कर मुझसे मोटी-मोटी क्लासिक नोवेल्स सुनी है I सबसे पहली किताब मैंने जो उन्हें सुनाई थी वह थी डेनियल स्टील की किताब – जोया I फिर मैंने उन्हें डेनियल स्टील की किताब ‘विंग्स’ सुनाईI फिर मैंने उन्हें मेरी सबसे पसंदीदा किताब सुनाई जिसका नाम है-जेन आएर I
Charlotte Bronte की यह किताब एक असाधारण कहानी है जेन आएर की जिसने बचपन से ही दुख देखें पर कभी हार नहीं माना I इस किताब का एक पैराग्राफ मुझे हमेशा ही याद रहता है और इसको मैं अपने जीवन में हमेशा लागू करती हूं I
“Life appears to me too short to be spent in nursing animosity or registering wrongs. We are, and must be, one and all, burdened by faults in this world; but the time will soon come when, I trust, we shall put them off in putting off our corruptible bodies…I hold another creed, which no one ever taught me, and which I seldom mention, but in which I delight, and to which I cling; for it extends hope to all; it makes Eternity a rest—a mighty home, not a terror and an abyss. Besides, with this creed, I can so clearly distinguish between the criminal and his crime, I can so sincerely forgive the first while I abhor the last; with this creed, revenge never worries my heart, degradation never too deeply disgusts me, injustice never crushes me too low; I live in calm, looking to the end”
-Charlotte Bronte, Jane Eyre
यह इस प्रकार है- मुझे जीवन इतना छोटा प्रतीत होता है कि मैं शत्रुता को दूर करने या गलतियाँ दर्ज करने में इसे व्यतीत नहीं कर सकता हूँ। हम इस दुनिया में दोषों के बोझ तले दबे, एक और सभी हैं; परन्तु शीघ्र ही वह समय आएगा जब, मुझे विश्वास है, हम उन्हें अपने भ्रष्ट शरीरों को दूर करने के लिए दूर कर देंगे … मैं एक और पंथ धारण करता हूं, जिसे किसी ने मुझे कभी नहीं सिखाया, और जिसका मैं शायद ही कभी उल्लेख करता हूं, लेकिन जिसमें मैं प्रसन्न हूं, और जिससे मैं जुड़ा हूँ; क्योंकि यह सब को आशा देता है; यह अनंत काल को विश्राम बनाता है—एक शक्तिशाली घर, न कि एक आतंक और एक रसातल।”
“इसके अलावा, इस पंथ के साथ, मैं अपराधी और उसके अपराध के बीच स्पष्ट रूप से अंतर कर सकता हूं, मैं पहले को इतनी ईमानदारी से माफ कर सकता हूं जबकि मैं आखिरी से घृणा करता हूं; इस पंथ के साथ, बदला कभी मेरे दिल को चिंतित नहीं करता है, गिरावट मुझे कभी भी गहराई से घृणा नहीं करती है, अन्याय मुझे कभी भी नीचे नहीं कुचलता है; मैं अंत की ओर देखते हुए शांति से रहता हूं। ”
कहानियों का सिलसिला तो चलता ही जाता है चाहे हम हो या ना हो I पर इस लेख को अब मैं यही अंत करना चाहूंगी I क्योंकि हमारे पास कहानियां बहुत ज्यादा है और वक्त बहुत कम I
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