शौर्य और उसके जुड़वां भाई श्रवण ओडिशा के चिलिका झील की एक सहायक नदी के किनारे बसे गांव जलाग्राम के मशहूर बच्चे थे। उनके पिता किशन जी ने 1999 के cyclone के बाद एक कम्युनिटी किचन शुरू किया था, जब गांव को सामूहिक भोजन और पुनर्वास के लिए एक साझा स्थान की ज़रूरत थी। जो काम एक राहत योजना के रूप में शुरू हुआ था, वह गांव की महिलाओं के सहयोग से धीरे-धीरे स्थानीय मजदूरों और स्कूली बच्चों के लिए एक समृद्ध mess/canteen बन गया।
किशन जी का सपना था कि वह अपने बेटों को सबसे अच्छा शिक्षा दिलाएं। श्रवण को किताबें और कहानियाँ बेहद पसंद थीं, लेकिन शौर्य को स्कूल से कोई लगाव नहीं था—वह तो दिनभर तालाबों में तैरता और गोता लगाता, और पानी के प्रति उसका प्रेम हर सांस के साथ गहराता जाता।
हर दोपहर जब श्रवण स्कूल से घर लौटता, तो वह अपने भाई को पढ़ाई और कहानियों के बारे में बताना चाहता। लेकिन शौर्य घर पर कम ही मिलता—अक्सर वह गांव के दूसरे बच्चों के साथ तालाब में भीगा हुआ नजर आता।
एक दिन, जब उनकी माँ बड़ी रसोई में खाना बना रही थीं और पास के शेड में गायें रंभा रही थीं, शौर्य आकर मेस की एक बेंच पर श्रवण के पास बैठ गया, जो एक चित्र-पुस्तक देख रहा था जिसे वह “एनसाइक्लोपीडिया” कहता था। शौर्य दूर से उस किताब को झांक रहा था, जब श्रवण ने हमेशा की तरह समझाना शुरू किया:
“देखो भैया! ये बड़ी मछली देख रहे हो? ये शार्क हैं—अलग-अलग तरह की, और इतनी खतरनाक कि आदमी को दो टुकड़ों में काट सकती हैं!”

“और इनके दांत तो देखो!” शौर्य ने आश्चर्य से कहा। “बिलकुल नुकीले और डरावने हैं।”
“मैं तुम्हें इस किताब से और भी बड़ी मछलियाँ दिखाऊंगा,” श्रवण ने पन्ना पलटा, लेकिन शौर्य का ध्यान अब तक हट चुका था और वह शेड में गायों को देखने चला गया।
कुछ सालों में शौर्य और बेहतर गोताखोर बन गया। अपने पिता की नाराज़गी के बावजूद, वह स्थानीय स्विमिंग पूल में अभ्यास करने लगा, जहां बच्चे उसके सांस रोककर तैरने के समय की गिनती करते। कुछ ही समय में, सेकंड मिनटों में बदल गए और उसकी खास प्रतिभा की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।

जब शौर्य चौदह साल का हुआ, चिलिका झील के किनारे एक डाइविंग प्रतियोगिता की घोषणा हुई। कई ज़िलों के किशोरों ने हिस्सा लिया, लेकिन शौर्य सबसे छोटा था। प्रतियोगिता में यह देखा जाना था कि कौन सबसे अधिक दूरी तक पानी के अंदर तैर सकता है। निर्धारित सीमा के अनुसार नावों में स्कूबा डाइवर्स और फर्स्ट-एड टीम तैनात थी। पानी में लगी रस्सियों से दूरी के निशान लगाए गए थे: 70 मीटर, 100 मीटर, 120 मीटर और अंत में 150 मीटर। जो 70 मीटर पार करता, उसे प्रशंसा पत्र मिलता।
हालाँकि शौर्य ने कई बार पानी के नीचे सांस रोकी थी, लेकिन ऐसी प्रतियोगिता में वह पहली बार हिस्सा ले रहा था। इस बार वह किसी तालाब या स्विमिंग पूल में नहीं, बल्कि विशाल चिलिका झील में तैरने वाला था—इसलिए वह थोड़ा घबराया हुआ था। कहा जाता था कि यह झील बहुत गहरी नहीं थी, लेकिन चौड़ी ज़रूर थी। फिर भी, उसने fins पहनकर अभ्यास किया, और हैरानी की बात थी कि उसके पिता भी इस प्रतियोगिता को लेकर उत्साहित थे।
प्रतियोगिता से एक दिन पहले, पूरा परिवार झील की ओर रवाना हुआ। यह एक मिनी छुट्टी जैसा महसूस हो रहा था—उन्होंने खाना पैक किया, बीच मैट और छाते साथ लिए। अगली सुबह जब वे प्रतियोगिता स्थल पर पहुँचे, तो तट और पानी दोनों ओर तैयारियों की हलचल थी।
शौर्य ने देखा कि दूरी मापने वाली नावें झील में दूर जा रही थीं। जब वे 70 मीटर पर रुकीं, तो उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। वह दूरी भी बहुत ज़्यादा लग रही थी। जल्द ही बाकी प्रतियोगी भी पहुँचे—सभी उससे बड़े—सोलह, अठारह, यहाँ तक कि उन्नीस साल के।
उसे खुद पर संदेह होने लगा। “ज़रूर ये प्रशिक्षित गोताखोर होंगे। इन्होंने पहले भी ऐसी प्रतियोगिताएँ लड़ी होंगी। मुझे तो कोई अनुभव नहीं है।”
“नहीं शौर्य,” श्रवण बोला, “वे तुमसे अच्छे नहीं हो सकते। तुम तो इतने सालों से गोता लगा रहे हो—मैंने तुम्हें 8-मिनट तक सांस रोके देखा है! मुझे यकीन है कि तुम कर सकते हो।”
“और अगर मैं हार गया तो?” शौर्य ने पूछा।
“तब भी यह दिन खास होगा—हम समुद्र तट पर picnic मनाएँगे और ढेर सारी यादें लेकर घर लौटेंगे।”
श्रवण की बातों ने शौर्य को शांति दी—केवल इसलिए नहीं कि वे प्रेरणादायक थीं, बल्कि इसलिए कि उनमें कोई भारी उम्मीद नहीं थी। शौर्य ने तय कर लिया—वह अपनी पूरी कोशिश करेगा। परिणाम जो भी हो, अनुभव अमूल्य होगा।
सुबह 8 बजे, शौर्य पाँच अन्य डाइवर्स के साथ लाइन में खड़ा था, प्रत्येक अलग नाव पर। किनारे पर माता-पिता और दर्शकों की भीड़ चियर कर रही थी। माइक पर आयोजक नियम समझा रहे थे।
फिन पहनकर सभी गोताखोर तैयार थे। काउंटडाउन शुरू हुआ—दस… नौ… आठ… शौर्य ने देखा सूरज की किरणें झील पर चमक रही थीं… सात… छह… पाँच… उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा… चार… तीन… दो…
उसने एक गहरी सांस ली।
एक।
सीटी बजी।
बाकी डाइवर्स पहले कूदे, फिर शौर्य ने एक और सांस ली और पानी में छलांग लगाई।
जैसे ही उसका शरीर पानी में गया, मांसपेशियों में जमा तनाव धीरे-धीरे कम होने लगा। वह अपने परिचित संसार—पानी—में था। हालांकि बाकी उससे आगे थे, लेकिन उसने जल्दी ही अपनी गति पकड़ ली। एक मिनट में वह 70 मीटर तक पहुँच गया।
हिम्मत और विश्वास से भरा, वह सावधानी से आगे बढ़ा, ज्यादा ताकत खर्च किए बिना। वह लगभग 10 फीट की गहराई पर तैर रहा था, दो डाइवर्स उससे ऊपर और एक तीन फीट नीचे था।
शौर्य ने और गहराई में जाने का जोखिम नहीं लिया। यह गहराई की नहीं, दूरी की प्रतियोगिता थी। जल्द ही उसने 100 मीटर पार कर लिया, लेकिन अब उसके फेफड़े जवाब देने लगे थे।
उसने देखा कि नीचे वाला डाइवर अब भी तेज़ी से तैर रहा था, जबकि ऊपर के दोनों सतह पर आ गए थे। अब सिर्फ वही और नीचे वाला बचा था। अचानक नीचे वाला डाइवर ऊपर की ओर आया और शौर्य के रास्ते को रोकता हुआ आगे निकल गया।
शौर्य ने प्रतिक्रिया नहीं दी। वह लगभग बेहोश होने वाला था और सतह पर जाने का निर्णय लिया।
तभी उसने देखा—उसके ऊपर कुछ फिसलता हुआ सा गया। पहले तो उसे लगा कोई और डाइवर है।
फिर और भी दिखाई दिए—तीन, शायद चार। लंबे फिन। मुड़े हुए शरीर।
बड़ी मछलियाँ।
उसका दिल रुक गया।
शार्क। वही जिनके बारे में श्रवण की किताब में पढ़ा था।
उसके हाथ-पैर सुन्न हो गए। चीख गले में अटक गई।

डर के मारे वह गहराई में भागा, खुद को बचाने की कोशिश करता हुआ। उसे महसूस हुआ कि वे जीव उसके चारों ओर छलांगें लगा रहे हैं। दिशा खोकर वह बाकी डाइवर्स से दूर हो गया, लेकिन शार्क की लहरें दिख रही थीं। दो अब उसके पास ही तैर रहे थे।
डर के मारे वह तेज़ तैरने लगा। दिशा का अंदाज़ा नहीं था—लेकिन अंत में उसे एक नाव के नीचे एक स्कूबा डाइवर नजर आया, शायद उसे ढूंढ रहा था।
एक मछली ने उसके कंधे को छू लिया। उसका चिकना और ताकतवर शरीर एक परछाईं की तरह गुजर गया। शौर्य सुन्न हो गया, दिल की धड़कन कानों में गूंज रही थी।
जैसे ही वह पास पहुँचा, डाइवर ने उसे देखा और उसका हाथ पकड़ लिया। दोनों सतह पर उभरे।
जब उसकी चेतना लौटी, उसके मुँह में पानी डाला जा रहा था, पाँव रगड़े जा रहे थे। नज़रों के आगे सब धुंधला था, फिर धीरे-धीरे साफ़ हुआ और दूर किनारा दिखाई देने लगा। वह बहुत दूर तक पहुँच चुका था। पास खड़ा स्कूबा डाइवर हैरानी से सिर हिला रहा था।
“तुमने 160 मीटर तैरा है,” उसने कहा। “तुमने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। तुमने ये कैसे किया?”
किनारे पर उसका परिवार पहले डर से, फिर गर्व से रो रहा था।
तारीफ़, तालियों और ट्रॉफी के बाद, परिवार ने समुद्र तट पर समुदाय के साथ जश्न मनाया। शौर्य अब भी यकीन नहीं कर पा रहा था—पनीर रोल खाते हुए उसने भाई को बताया कि वह कैसे जीत गया।
“मैं तो मरने वाला था, शार्क मुझे घेर रही थीं!”
श्रवण ने पानी की ओर squint किया। कुछ बड़ी मछलियाँ हवा में छलांग मार रही थीं।
“अगर तुम उनके बारे में कह रहे हो भैया,” वह हँसा, “तो वो शार्क नहीं हैं। वो डॉल्फिन हैं—सबसे शांत मछलियाँ।”
शौर्य चौंका, मुँह आधा खुला।
“क्या?!”
श्रवण हँसी से लोट-पोट हो गया।
“ मैं तो जान बचाने के लिए भाग रहा था। काश मुझे पता होता!”
“भैया,” श्रवण हँसते हुए बोला, “इस बार अच्छा ही हुआ कि तुम्हें पता नहीं था!”

Read the story in English: Shaurya and the Shark Surprise
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